पौधरोपण योजना में अनियमितता की बू: जापानी तकनीक की लागत और प्रक्रिया पर उठाए गंभीर सवाल, 52 लाख रुपये खर्च पर जताई आपत्ति
मामले की शुरुआत: जापानी मियावाकी तकनीक से पौधरोपण योजना पर विवाद
विशेष सवांददाता: उत्तराखंड के देहरादून और मसूरी वन प्रभाग में जापान की प्रचलित मियावाकी तकनीक से हरियाली बढ़ाने की योजना को लेकर अब विवाद खड़ा हो गया है। इस योजना के प्रस्ताव में अनियमितताओं की आशंका जताई गई है।
वन संरक्षक अनुसंधान हल्द्वानी के सीसीएफ (कार्ययोजना) संजीव चतुर्वेदी ने इस योजना को दुनिया की सबसे महंगी पौधरोपण योजना बताते हुए गहरी आपत्ति जताई है।
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एक पौधा 10 नहीं, 100 रुपये में क्यों?
सीसीएफ चतुर्वेदी ने प्रमुख वन संरक्षक को लिखे पत्र में सवाल उठाया है कि जब वन विभाग की नर्सरी से प्रति पौधा 10 रुपये में उपलब्ध हो सकता है, तो उसे 100 रुपये प्रति पौधा दर पर क्यों खरीदा जाना प्रस्तावित किया गया?
देहरादून वन प्रभाग में 18,333 पौधों को इस दर से खरीदने का प्रस्ताव 18.33 लाख रुपये में बनाया गया है, जबकि इसकी लागत सामान्य रूप से बहुत कम होती है।
14 लाख में हो चुका है कार्य, अब 52 लाख क्यों?
सीसीएफ के अनुसार, देहरादून के कालसी क्षेत्र में एक हेक्टेयर में इसी तकनीक से 14.83 लाख रुपये में पौधारोपण का कार्य पहले ही सफलतापूर्वक हो चुका है। फिर अब उसी तरह के कार्य के लिए 52.40 लाख रुपये का प्रस्ताव क्यों बनाया गया?
यह अंतर दर्शाता है कि लागत में साफ-साफ विसंगति है, जिसे लेकर विभागीय जांच की सिफारिश की गई है।
मसूरी वन प्रभाग की योजना पर भी संदेह
इसी प्रकार, मसूरी वन प्रभाग की छह रेंजों में 4.25 करोड़ रुपये की लागत से पौधरोपण योजना का प्रस्ताव भी विवादों में है। योजना के अंतर्गत 7-8 फीट ऊंचे पौधे लगाए जाने की बात कही गई है, जबकि मियावाकी तकनीक में छोटे पौधे लगाने की आवश्यकता होती है, जो धीरे-धीरे विकसित होते हैं।
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क्या बोले जिम्मेदार अधिकारी?
- डॉ. धनंजय मोहन (प्रमुख वन संरक्षक):
“प्रकरण संज्ञान में है, इसकी जांच कराई जा रही है और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।” - नीरज शर्मा (डीएफओ, देहरादून):
“हमने मानकों के अनुसार प्रस्ताव तैयार किया है।” - अमित कंवर (डीएफओ, मसूरी):
“प्रस्ताव में कमियों को सुधारने का कार्य चल रहा है। इसे संशोधित कर दोबारा तैयार किया जा रहा है।”
इस पूरे प्रकरण ने उत्तराखंड में चल रही पौधरोपण योजनाओं की पारदर्शिता और बजट प्रबंधन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। ऐसे में जरूरी है कि मियावाकी जैसी तकनीकों को अपनाने के साथ-साथ सही लागत मूल्यांकन, प्रक्रिया की शुद्धता और जवाबदेही को भी सुनिश्चित किया जाए।